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गेहूं की कटाई के तुरंत बाद लगाएं ये फसल, सिर्फ 40-50 दिन में पाएं बंपर मुनाफ़ा!

गेहूं की कटाई का समय किसानों के लिए कड़ी मेहनत और खुशी का समय होता है। खेत खलिहान से भर जाते हैं और मेहनत का फल सामने होता है। लेकिन गेहूं की कटाई के बाद, अक्सर खेत अगली मुख्य फसल (जैसे धान) की बुवाई तक कुछ समय के लिए खाली रह जाते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि इस खाली समय का उपयोग करके अतिरिक्त कमाई कैसे की जा सकती है और साथ ही अपनी मिट्टी की सेहत को भी कैसे सुधारा जा सकता है?

अगर हाँ, तो यह ब्लॉग पोस्ट आपके लिए है! हम आपको एक ऐसी फसल के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे आप गेहूं की कटाई के तुरंत बाद लगाकर, सिर्फ 40-50 दिनों जैसी कम अवधि में शानदार मुनाफा कमा सकते हैं। यह सिर्फ पैसे कमाने का जरिया नहीं है, बल्कि आपकी ज़मीन को भी फायदा पहुंचाती है।

तो तैयार हो जाइए जानने के लिए कि कौन सी है ये जादुई फसल और कैसे आप गेहूं के बाद मूंग की खेती करके अपनी आय बढ़ा सकते हैं और अपनी मिट्टी को भी उपजाऊ बना सकते हैं।

गेहूं के बाद मूंग की खेती | Moong cultivation after wheat

अध्याय 1: वो कौन सी फसल है जो गेहूं के बाद मचा सकती है धमाल?

वो शानदार और मुनाफेदार फसल जिसे आप गेहूं की कटाई के तुरंत बाद लगा सकते हैं और जो कम समय में अच्छी कमाई देती है, वो है मूंग दाल (Green Gram)!

जी हाँ, वही पौष्टिक मूंग दाल जो आपके किचन का अहम हिस्सा है। मूंग एक दलहनी फसल है जो अपनी कम अवधि, कम पानी की ज़रूरत और मिट्टी को बेहतर बनाने वाले गुणों के कारण गेहूं के बाद की खेती के लिए एकदम उपयुक्त है। इसे अक्सर जायद (Zaid) फसल के रूप में उगाया जाता है, जो रबी (Rabi) और खरीफ (Kharif) सीजन के बीच का छोटा अंतराल होता है।

यह कोई ‘सब्ज़ी’ फसल नहीं है जिसे आप ताज़ा फलियों के रूप में बेचें (हालांकि हरी फलियों को भी बेचा जा सकता है), बल्कि यह एक दाल है जिसके सूखे बीजों की बाजार में हमेशा अच्छी मांग रहती है। 40-50 दिन का समय इसकी कुछ उन्नत और जल्दी पकने वाली किस्मों में शुरुआती फलियाँ आने या हरे चारे के रूप में कटाई के लिए पर्याप्त हो सकता है, जिससे आपको कम समय में ही मुनाफ़ा या लाभ मिलना शुरू हो जाता है, जबकि मुख्य दाल की कटाई में थोड़ा और समय लग सकता है (आमतौर पर 60-75 दिन)। लेकिन इसका कम अवधि में तैयार होना ही इसे इतना आकर्षक बनाता है।

अध्याय 2: गेहूं कटाई के तुरंत बाद ही मूंग क्यों लगाएं? फायदे अनेक!

गेहूं के बाद मूंग की खेती करने के कई जबरदस्त फायदे हैं:

  1. कम समय में पकने वाली फसल: मूंग की कई ऐसी किस्में उपलब्ध हैं जो केवल 60-75 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं। कुछ बहुत जल्दी पकने वाली किस्में 50-60 दिन में भी तैयार हो सकती हैं। इसका मतलब है कि आप अपनी ज़मीन को धान या अगली मुख्य फसल की बुवाई से पहले खाली नहीं छोड़ते, बल्कि उसका सदुपयोग करते हैं।

  2. अतिरिक्त आय का स्रोत (बंपर मुनाफ़ा!): जब आपकी मुख्य फसलें कट चुकी हों और अगली फसल लगने में समय हो, उस बीच मूंग की खेती आपको अच्छा-खासा अतिरिक्त मुनाफ़ा दे सकती है। मूंग दाल की बाज़ार में कीमत अच्छी मिलती है।

  3. मिट्टी की सेहत में सुधार: मूंग एक दलहनी फसल है। इसकी जड़ें मिट्टी में नाइट्रोजन फिक्स करती हैं। यह नाइट्रोजन मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाता है। अगली फसल के लिए आपको शायद कम नाइट्रोजन उर्वरक डालना पड़े, जिससे आपकी लागत कम होगी। यह एक तरह का अप्रत्यक्ष मुनाफ़ा है!

  4. कम पानी की आवश्यकता: गेहूं कटाई के बाद खेत में बची हुई नमी (residual moisture) मूंग की शुरुआती ग्रोथ के लिए अक्सर पर्याप्त होती है। इसे धान जैसी फसलों की तुलना में बहुत कम पानी चाहिए होता है, जो जायद सीजन में पानी की कमी वाले क्षेत्रों के लिए फायदेमंद है।

  5. कम लागत और मेहनत: मूंग की खेती में आमतौर पर कम उर्वरक और कम कीटनाशकों की ज़रूरत होती है, क्योंकि यह मिट्टी को खुद ही बेहतर बनाती है और कीटों का प्रकोप भी कुछ हद तक कम होता है (बशर्ते आप सही किस्म चुनें और देखभाल करें)।

  6. खरपतवार नियंत्रण: खेत खाली रहने पर खरपतवार उग आते हैं। मूंग की फसल खेत को ढक कर खरपतवारों को उगने से रोकने में मदद करती है।

  7. हरा चारा या हरी खाद: यदि किसी कारण से आप दाल की फसल पूरी नहीं लेना चाहते, तो इसके हरे पौधे पशुओं के लिए पौष्टिक हरे चारे का काम करते हैं। या फिर, आप पूरी फसल को खेत में ही जोत कर हरी खाद के रूप में मिट्टी में मिला सकते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता और कार्बनिक पदार्थ की मात्रा कई गुना बढ़ जाती है। यह भी दीर्घकालिक मुनाफ़ा ही है।

ये सारे फायदे मिलकर गेहूं के बाद मूंग की खेती को एक बेहद आकर्षक और फायदेमंद विकल्प बनाते हैं।

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अध्याय 3: गेहूं के बाद मूंग की खेती कैसे करें: सरल और प्रभावी तरीका

गेहूं के बाद मूंग की खेती करना बहुत जटिल नहीं है। यहाँ कुछ ज़रूरी बातें बताई गई हैं:

  1. खेत की तैयारी: गेहूं की कटाई के बाद खेत में गेहूं के डंठल या अवशेष बचे होंगे। इन्हें खेत से हटा दें या बारीक काटकर मिट्टी में मिला दें। ज़्यादा गहरी जुताई की ज़रूरत नहीं है। एक या दो हल्की जुताई करके खेत को समतल कर लें। अगर खेत में गेहूं की कटाई के तुरंत बाद पर्याप्त नमी है, तो बिना जुताई (Zero Tillage) या बहुत कम जुताई (Minimum Tillage) से भी बुवाई की जा सकती है, जिससे लागत और समय दोनों बचते हैं।

  2. सही किस्म का चुनाव: 40-50 दिन में ‘बंपर मुनाफे’ की बात हो रही है, तो जल्दी पकने वाली और ज़्यादा उपज देने वाली मूंग की उन्नत किस्मों का चुनाव सबसे ज़रूरी है। कृषि विश्वविद्यालयों और सरकारी बीज भंडारों से अपनी जलवायु और क्षेत्र के लिए उपयुक्त जल्दी पकने वाली किस्मों (जैसे पूसा विशाल, सम्राट, एमएच 318 आदि, या अपने क्षेत्र की सिफारिश की गई किस्म) के बारे में जानकारी लें।

  3. बीज की मात्रा और बीजोपचार: प्रति एकड़ लगभग 8-10 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई से पहले बीज को राइजोबियम कल्चर और फफूंदीनाशक दवा (जैसे थीरम या कार्बेन्डाजिम) से उपचारित करना बहुत फायदेमंद होता है। राइजोबियम कल्चर जड़ों में नाइट्रोजन फिक्स करने वाले बैक्टीरिया की संख्या बढ़ाता है।

  4. बुवाई का समय और तरीका: गेहूं की कटाई के तुरंत बाद, अप्रैल के पहले पखवाड़े से मई के पहले सप्ताह तक बुवाई कर देनी चाहिए। इससे फसल को पकने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है और यह मानसून आने से पहले तैयार हो जाती है। बुवाई पंक्तियों में करें, पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-45 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी रखें। बीज को 4-6 सेमी गहरा बोएं।

  5. सिंचाई: जैसा कि बताया गया, मूंग को कम पानी चाहिए। आमतौर पर 1-2 सिंचाई पर्याप्त होती हैं। पहली सिंचाई फूल आने के समय (बुवाई के 25-30 दिन बाद) और दूसरी फली बनने के समय (बुवाई के 40-45 दिन बाद) की जा सकती है। बारिश हो जाए तो सिंचाई की ज़रूरत नहीं होती।

  6. उर्वरक: दलहनी फसल होने के कारण मूंग को नाइट्रोजन की बहुत कम आवश्यकता होती है (यह खुद बनाती है)। बुवाई के समय प्रति एकड़ 15-20 किलोग्राम डीएपी (DAP) या सिंगल सुपर फास्फेट (SSP) डालना फास्फोरस की आपूर्ति के लिए पर्याप्त होता है, जो जड़ विकास और नाइट्रोजन फिक्सेशन में मदद करता है। पोटाश की आवश्यकता मिट्टी परीक्षण के आधार पर हो तो डालें।

  7. खरपतवार और कीट नियंत्रण: शुरुआती अवस्था में खरपतवार नियंत्रण ज़रूरी है। एक या दो बार निराई-गुड़ाई करें। कीटों में मुख्यतः माहू (Aphid) या पत्ती खाने वाली इल्लियाँ लग सकती हैं। आवश्यकतानुसार जैविक या रासायनिक कीटनाशकों का सुरक्षित मात्रा में छिड़काव करें।

यह सरल तरीका अपनाकर आप गेहूं के बाद मूंग की खेती से अधिकतम लाभ उठा सकते हैं।

अध्याय 4: 40-50 दिन में ‘बंपर मुनाफ़े’ का गणित

आपने सोचा होगा कि 40-50 दिन में कैसे बंपर मुनाफ़ा मिल सकता है, जबकि मुख्य दाल की कटाई में थोड़ा और समय लगता है। यहाँ इस ‘ट्रिक’ का गणित समझिए:

  • जल्दी पकने वाली किस्में: कुछ किस्में 50-60 दिन में ही पकने लगती हैं। 40-50 दिन में उनमें अच्छी-खासी फलियाँ आ जाती हैं।

  • शुरुआती उपज: 40-50 दिन की अवस्था में आप फसल से शुरुआती उपज (कुछ हरी फलियाँ) ले सकते हैं या यह स्टेज बताती है कि मुख्य उपज जल्द ही आने वाली है। इस कम समय में भी पौधा मिट्टी में नाइट्रोजन फिक्स करने का काम शुरू कर देता है, जिसका फायदा अगली फसल को मिलता है (उर्वरक लागत की बचत)।

  • खेत का सदुपयोग: सबसे बड़ा ‘मुनाफ़ा’ यह है कि आपकी ज़मीन जो खाली रहकर खरपतवार पैदा करती, वही आपको कुछ हफ्तों में अतिरिक्त आय का स्रोत दे रही है।

  • कम लागत: बुवाई से लेकर कटाई तक लागत कम आती है, जिससे लागत और आय का अनुपात बेहतर होता है।

  • बाजार की मांग: जायद सीजन में मूंग दाल की आवक कम होती है, इसलिए शुरुआती दौर में बाजार भाव अच्छा मिल सकता है।

भले ही ‘बंपर मुनाफ़ा’ शब्द आकर्षक हो, इसका अर्थ सिर्फ तत्काल नकद आय नहीं है, बल्कि इसमें मिट्टी की सेहत में सुधार, अगली फसल की लागत में कमी और ज़मीन का कुशल उपयोग जैसे दीर्घकालिक फायदे भी शामिल हैं जो कुल मिलाकर आपकी खेती को अधिक लाभदायक बनाते हैं।

अध्याय 5: संभावित जोखिम और सावधानियां

हर खेती की तरह गेहूं के बाद मूंग की खेती में भी कुछ जोखिम हो सकते हैं:

  • मौसम: जायद सीजन में अचानक भारी बारिश या लू (Heatwave) फसल को नुकसान पहुंचा सकती है।

  • कीट और रोग: कुछ कीट या रोग फसल को प्रभावित कर सकते हैं, खासकर अगर समय पर नियंत्रण न किया जाए।

  • बाजार भाव: कटाई के समय बाजार भाव में उतार-चढ़ाव आ सकता है।

इन जोखिमों को कम करने के लिए सही किस्म का चुनाव, उचित समय पर बुवाई, आवश्यकतानुसार सिंचाई और नियमित फसल की निगरानी ज़रूरी है।

निष्कर्ष

गेहूं की कटाई के बाद अपनी ज़मीन को खाली छोड़ना अब समझदारी नहीं है। गेहूं के बाद मूंग की खेती करके आप कम समय, कम लागत और कम पानी में अतिरिक्त मुनाफ़ा कमा सकते हैं, साथ ही अपनी मिट्टी की सेहत को भी सुधार सकते हैं।

यह एक ऐसा स्मार्ट तरीका है जिससे आप अपनी खेती से दोहरा लाभ प्राप्त कर सकते हैं। बस सही जानकारी, सही किस्म का चुनाव और उचित देखभाल से आप इस 40-50 दिन की फसल से सचमुच ‘बंपर’ फायदा उठा सकते हैं।

तो, इस बार गेहूं काटने के बाद अपनी ज़मीन को यूं ही न रहने दें। मूंग की बुवाई करें और कम समय में अपनी मेहनत का मीठा फल पाएं!

क्या आपने कभी गेहूं के बाद मूंग की खेती की है? आपका अनुभव कैसा रहा? नीचे कमेंट्स में ज़रूर बताएं!


अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ – Frequently Asked Questions)

  • सवाल: गेहूं कटाई के बाद मूंग की बुवाई का सबसे अच्छा समय क्या है?

    • जवाब: आमतौर पर, गेहूं की कटाई के तुरंत बाद, यानी अप्रैल के पहले पखवाड़े से लेकर मई के पहले सप्ताह तक का समय गेहूं के बाद मूंग की खेती के लिए सबसे उपयुक्त होता है।

  • सवाल: मूंग की फसल कितने दिनों में तैयार हो जाती है?

    • ** जवाब:** मूंग की उन्नत और जल्दी पकने वाली किस्में आमतौर पर 60-75 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं। कुछ किस्में 50-60 दिनों में भी तैयार हो सकती हैं, जिससे आपको कम समय में ही लाभ मिलना शुरू हो जाता है।

  • सवाल: क्या मूंग की खेती के लिए बहुत ज़्यादा पानी चाहिए?

    • जवाब: नहीं, मूंग की फसल को धान या गेहूं जैसी फसलों की तुलना में बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है। आमतौर पर 1-2 सिंचाई पर्याप्त होती हैं, जो खेत में बची हुई नमी पर निर्भर करता है।

  • सवाल: मूंग की खेती से मिट्टी को क्या फायदा होता है?

    • जवाब: मूंग एक दलहनी फसल है जो अपनी जड़ों में मौजूद बैक्टीरिया (राइजोबियम) की मदद से हवा से नाइट्रोजन लेकर मिट्टी में जमा करती है। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और अगली फसल के लिए नाइट्रोजन उर्वरक की आवश्यकता कम हो जाती है।

  • सवाल: मैं मूंग की कौन सी किस्म चुनूँ जो जल्दी पके और ज़्यादा उपज दे?

    • जवाब: अपने क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के लिए उपयुक्त, जल्दी पकने वाली और रोग प्रतिरोधी उन्नत किस्मों के बारे में जानने के लिए अपने स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि विभाग से संपर्क करें। पूसा विशाल, सम्राट, एमएच 318 कुछ लोकप्रिय जल्दी पकने वाली किस्में हैं।

  • सवाल: क्या मूंग की फसल को कीटों या बीमारियों का ज़्यादा खतरा होता है?

    • जवाब: मूंग में कुछ कीट (जैसे माहू) या रोग (जैसे पीला मोज़ेक वायरस) लग सकते हैं। सही किस्म का चुनाव (रोग प्रतिरोधी) और समय पर निगरानी करके और आवश्यकतानुसार जैविक या रासायनिक नियंत्रण उपाय अपनाकर इन्हें नियंत्रित किया जा सकता है।

  • सवाल: 40-50 दिन में बंपर मुनाफे का क्या मतलब है, जबकि फसल 60-75 दिन में पकती है?

    • जवाब: 40-50 दिन में फसल में फलियाँ आनी शुरू हो जाती हैं, और कुछ जल्दी पकने वाली किस्में इस समय तक शुरुआती उपज देने लगती हैं। ‘बंपर मुनाफे’ में न केवल तत्काल उपज की बिक्री शामिल है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता में सुधार से अगली फसल की लागत में होने वाली बचत और खेत का कुशलतापूर्वक उपयोग करके अतिरिक्त आय अर्जित करना भी शामिल है। यह कुल मिलाकर आपकी खेती के लाभ को बढ़ाता है।

  • सवाल: क्या मैं मूंग की खेती बिना जुताई (Zero Tillage) के कर सकता हूँ?

    • जवाब: हाँ, अगर गेहूं की कटाई के बाद खेत में पर्याप्त नमी है और खेत साफ है (गेहूं के अवशेष ज़्यादा नहीं हैं), तो जीरो टिलेज सीड ड्रिल का उपयोग करके बिना जुताई के भी मूंग की बुवाई सफलतापूर्वक की जा सकती है। इससे लागत और समय दोनों बचते हैं।

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